रफीक खान
सिविल तथा दीवानी मामलों को आपराधिक स्वरूप देने की प्रैक्टिस पर प्रहार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के एक निर्णय को उचित ठहराया है। जबलपुर के चोपड़ा बिल्डर से संबंधित इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपना महत्वपूर्ण फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धुलिया तथा जस्टिस विनोद चंद्रन की युगल पीठ ने कहा कि जहां पर संपत्ति से संबंधित सिविल विभागों एवं दीवानी मुकदमा को आपराधिक स्वरूप देते हुए कलाई मोड़ने जैसी कार्रवाई FIR के रूप में की जाती है, वहां पर ऐसी अपराधिक कार्रवाई को निरस्त किया जाना ही उचित होता है। It is inappropriate to criminalize civil and civil cases, SC justifies HC order in Chopra Builder case
इस केस के संबंध में जानकारी देते हुए अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने बताया कि नवंबर 2023 में मध्य प्रदेश के जबलपुर निवासी चोपड़ा बिल्डर्स के पार्टनर के विरुद्ध पुलिस द्वारा एक समपत्ति सम्बन्धी विवाद पर एफ.आई.आर दर्ज की थी, जिसको हाई कोर्ट द्वारा निरस्त कर दिया गया । हाई कोर्ट के फैसले के विरुद्ध शिकायतकर्ता आशीष जैन @लालू ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें आधार लिया था कि एफ.आई.आर को गलत तरीके से निरस्त कर दिया गया। चोपड़ा बिल्डर्स के पार्टनर हरभजन सिंह चोपड़ा एवं कंवरजीत सिंह चोपड़ा की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता एवं सिद्धांत कोचर ने सुको में पैरवी की।
मामला कटंगा क्रासिंग के पास स्थित संपत्ति का
प्रकरण कटंगा क्रासिंग स्थित एक भूमि एवं बिल्डिंग से संबंधित था, जिसके विक्रय को लेकर दोनों पक्षों में काफी सालों से विवाद चल रहे थे। नवम्बर 2023 में एफ.आई.आर दर्ज की गयी कि 65 लाख रुपये लेकर इस बहुमूल्य ज़मीन का सौदा किया गया, परन्तु पैसे लेने के पश्चात् भी उसका विक्रय पत्र निष्पादित नहीं किया गया जो की भूमि स्वामी चोपड़ा बिल्डर्स के भागीदारों की ज़िम्मेदारी थी। इस एफ.आई.आर में यह भी कहा गया कि ज़मीन पहले से ही बैंक में बंधक थी, जिस तथ्य को छुपाते हुए विक्रय अनुबंध वर्ष 2019 में किया गया। यह भी कहा गया की तत्पश्चात उसी संपत्ति को विक्रय होते हुए भी अन्य व्यक्ति रवि ढींगरा को वर्ष 2020 में 3 करोड़ रूपये लेकर बेच दी गयी एवं इस प्रकार से धोखा धड़ी एवं आपराधिक न्यास भंग की प्राथमिकी दर्ज करवाई गयी।
तीन-तीन FIR दर्ज करवाई गई
3 अलग-अलग प्राथमिकी 3 शिकायत-कर्ताओं द्वारा दर्ज करवाई गयी। उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा पूर्व में लंबी सुनवाई कर अपने विस्तृत फैसले द्वारा एफ.आई.आर को निरस्त करते हुए कहा था की पूर्णतः सिविल एवं दीवानी प्रकरण को आपराधिक स्वरूप देकर चार वर्ष के पश्चात एफ.आई.आर दर्ज करवाना न्यायिक मशीनरी का दुरुपयोग है। पूर्व का विक्रय अनुबंध वर्ष 2018 के 1 साल पश्चात 2020 में ही समाप्त हो गया था एवं किसी भी तरह की सिविल रेमेडी शिकायतकर्ता द्वारा अनुबंध को लागू करवाने हेतु नहीं ली गई। हाई कोर्ट के फैसले के विरुद्ध शिकायतकर्ता गण ने सुको में अपील लगाई जिसमें पूर्व में नवंबर में सुको ने नोटिस जारी करते हुए न्यायालय ने दोनों पक्षों को मध्यस्थता कर आपसी विवाद का एक परस्पर सहमत समाधान निकालने हेतु सुझाव दिया था, जिस पर मध्यस्थता एवं समाधान संभव नहीं हो पाया। इसके पश्चात सोमवार को अंतिम सुनवाई हुई, जिसमें सुनवाई के दौरान अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने तर्क दिया की जब विक्रय अनुबंध की सीमा वर्ष 2019 में ही समाप्त हो गयी थी, तो चार साल बाद नवंबर 2023 में एफ.आई.आर करना औचित्यहीन था। गुप्ता द्वारा यह भी तर्क दिया गया की केवल कलाई मोड़ने हेतु एवं अपना पैसा वापस लेने हेतु यह एफ.आई.आर करवाई गयी जिस उद्देश्य हेतु सिविल विवाद भी दायर किया गया जो की लंबित है, परन्तु किसी भी तरह का उपयुक्त परिणाम नहीं मिला। अतएव ऐसी स्थितियों में उच्च न्यायालय द्वारा एफ.आई.आर को निरस्त कर कोई भी त्रुटि नहीं की गयी।
पुलिस मशीनरी का उपयोग अवैधानिक
सुको की युगल पीठ ने अपने अंतिम फैसले में उच्च न्यायालय के फैसले को उपयुक्त मानते हुए कहा की शिकायतकर्ता के पास विशेष अनुतोष अधिनियम में सिविल रेमेडी उपलब्ध थी, जिसका उनके द्वारा समय पर फायदा नहीं उठाया गया एवं दीवानी प्रकरण की जगह फौजदारी प्रकरण दबाव बनाने हेतु दायर किया गया। इस प्रकार से एक सिविल प्रकृति के प्रकरण को क्रिमिनल स्वरूप देना और पुलिस मशीनरी का दुरुपयोग करना अवैधानिक है एवं उच्च न्यायालय द्वारा सही तौर पर ऐसी एफ.आई.आर निरस्त की गयी।
तीन-तीन FIR दर्ज करवाई गई
3 अलग-अलग प्राथमिकी 3 शिकायत-कर्ताओं द्वारा दर्ज करवाई गयी। उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा पूर्व में लंबी सुनवाई कर अपने विस्तृत फैसले द्वारा एफ.आई.आर को निरस्त करते हुए कहा था की पूर्णतः सिविल एवं दीवानी प्रकरण को आपराधिक स्वरूप देकर चार वर्ष के पश्चात एफ.आई.आर दर्ज करवाना न्यायिक मशीनरी का दुरुपयोग है। पूर्व का विक्रय अनुबंध वर्ष 2018 के 1 साल पश्चात 2020 में ही समाप्त हो गया था एवं किसी भी तरह की सिविल रेमेडी शिकायतकर्ता द्वारा अनुबंध को लागू करवाने हेतु नहीं ली गई। हाई कोर्ट के फैसले के विरुद्ध शिकायतकर्ता गण ने सुको में अपील लगाई जिसमें पूर्व में नवंबर में सुको ने नोटिस जारी करते हुए न्यायालय ने दोनों पक्षों को मध्यस्थता कर आपसी विवाद का एक परस्पर सहमत समाधान निकालने हेतु सुझाव दिया था, जिस पर मध्यस्थता एवं समाधान संभव नहीं हो पाया। इसके पश्चात सोमवार को अंतिम सुनवाई हुई, जिसमें सुनवाई के दौरान अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने तर्क दिया की जब विक्रय अनुबंध की सीमा वर्ष 2019 में ही समाप्त हो गयी थी, तो चार साल बाद नवंबर 2023 में एफ.आई.आर करना औचित्यहीन था। गुप्ता द्वारा यह भी तर्क दिया गया की केवल कलाई मोड़ने हेतु एवं अपना पैसा वापस लेने हेतु यह एफ.आई.आर करवाई गयी जिस उद्देश्य हेतु सिविल विवाद भी दायर किया गया जो की लंबित है, परन्तु किसी भी तरह का उपयुक्त परिणाम नहीं मिला। अतएव ऐसी स्थितियों में उच्च न्यायालय द्वारा एफ.आई.आर को निरस्त कर कोई भी त्रुटि नहीं की गयी।
पुलिस मशीनरी का उपयोग अवैधानिक
सुको की युगल पीठ ने अपने अंतिम फैसले में उच्च न्यायालय के फैसले को उपयुक्त मानते हुए कहा की शिकायतकर्ता के पास विशेष अनुतोष अधिनियम में सिविल रेमेडी उपलब्ध थी, जिसका उनके द्वारा समय पर फायदा नहीं उठाया गया एवं दीवानी प्रकरण की जगह फौजदारी प्रकरण दबाव बनाने हेतु दायर किया गया। इस प्रकार से एक सिविल प्रकृति के प्रकरण को क्रिमिनल स्वरूप देना और पुलिस मशीनरी का दुरुपयोग करना अवैधानिक है एवं उच्च न्यायालय द्वारा सही तौर पर ऐसी एफ.आई.आर निरस्त की गयी।