IAS-IPS अधिकारियों के बच्चों को नहीं मिलना चाहिए आरक्षण का लाभ, SC ने कहा सरकार को अधिकार - khabarupdateindia

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IAS-IPS अधिकारियों के बच्चों को नहीं मिलना चाहिए आरक्षण का लाभ, SC ने कहा सरकार को अधिकार


रफीक खान
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल निवासी एक याचिकाकर्त्ता ने सुप्रीम कोर्ट की शरण लेते हुए याचिका प्रस्तुत की और कहा कि IAS तथा IPS अधिकारियों के बच्चों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। उन्हें आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बी.आर. गवई एवं अजय मसीह की युगल पीठ ने भोपाल के एक सामाजिक कार्यकर्ता संतोष मालवीय के प्रकरण में सुनवाई करते हुए कहा की अनुसूचित जाति एवं जनजाति के आरक्षणों से ‘क्रीमी लेयर’ को बाहर रखना सरकार एवं विधायिका का दायित्व है, न कि न्यायालय का। Children of IAS-IPS officers should not get the benefit of reservation, SC said the government has the right

भोपाल निवासी संतोष मालवीय द्वारा सुको में याचिका दायर कर यह कहा गया था कि प्रदेश भर में इक्कीस विभागों द्वारा की जाने वाली नियुक्तियों में आईएएस, आईपीएस एवं सभी वर्ग एक के अधिकारियों के बच्चों एवं आश्रितों को किसी भी तरह के आरक्षण का फायदा न दिया जाए क्योंकि वह ‘क्रीमी लेयर’ के अंतर्गत आते है एवं आरक्षण का फायदा उठाने के कारण सामाजिक एवं शिक्षित तौर पर विकसित हो चुके है, जिस कारण आरक्षण की उन्हें आवश्यकता नहीं है। याचिकाकर्ता संतोष मालवीय की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने पैरवी की। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक पीठ ने 4 : 3 के अनुपात में 1 अगस्त 2024 को पंजाब राज्य बनाम दविन्दर सिंह में आदेशित किया था की अजा - जजा आरक्षण में भी ‘क्रीमी लेयर’ सिद्धांत को जारी किया जाए एवं ‘क्रीमी लेयर’ लागू करते हुए जिन - जिन परिवारों ने इसका फायदा उठा कर अपने सामाजिक एवं शिक्षित स्तर को बेहतर कर दिया है, बढ़ा दिया है, उनको आरक्षण का फायदा न दिया जाए। न्यायमूर्ति श्री बी. आर. गवई द्वारा इस सम्बन्ध में मुख्य निर्णय दिया था एवं अन्य तीन न्यायमूर्तियों द्वारा उसका समर्थन किया था। न्यायमूर्ति श्री बी. आर. गवई द्वारा ‘क्रीमी लेयर’ के सिद्धांत को तत्काल लागू करने हेतु आदेशित करते हुए यह भी कहा कि आईएएस, आईपीएस एवं ऐसे सभी वरिष्ठ शासकीय सेवाओं में जो आरक्षण का लाभ पा चुके सरकारी अफसर हैं, उनके बच्चों एवं आश्रितों को अनुचित होगा की आरक्षण का फायदा दिया जाए। संतोष मालवीय द्वारा जनहित याचिका पूर्व में म.प्र. उच्च न्यायालय में दायर की गयी, जिसमें कहा गया कि मध्य प्रदेश राज्य द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति हेतु अधिनियम 1994 में उपयुक्त संशोधन करते हुए ‘क्रीमी लेयर’ को निष्कासित किया जाए एवं आरक्षण को उसी वर्ग को दिया जाए, जिस हेतु इसका प्रावधान किया गया है। उच्च न्यायालय द्वारा दिसंबर के दूसरे सप्ताह में इस याचिका को इस आधार पर सुनवाई करने से मना कर दिया था कि इस मुद्दे को मात्र सुप्रीम कोर्ट ही निर्मित करने हेतु सक्षम है। इसके पश्चात मालवीय द्वारा सुको में याचिका दायर करते हुए यह माँग की।

सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने यह दिया तर्क

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने तर्क दिया कि वे सभी शासकीय अफसर जिन्होंने आरक्षण का लाभ उठाकर अपनी एक पीढ़ी की सामाजिक एवं शैक्षणिक अयोग्यता एवं पिछड़ापन दूर कर लिया है, उसको ‘क्रीमी लेयर’ मानते हुए आरक्षण से बाहर करना अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा जो वास्तविक रूप से आरक्षण का भागीदार है एवं जिसको उसका वास्तविक लाभार्थी होना चाहिए, उस तक आरक्षण का फायदा नहीं पहुँच पाता। गुप्ता ने यह भी तर्क दिया कि आरक्षण लागू करने के लिए यह आवश्यक है कि आरक्षण का लाभार्थी सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से अत्यंत पिछड़ा हो और पिछड़ापन आरक्षण हेतु एक आवश्यक शर्त है, जिसको संवैधानिक पीठ द्वारा व्याख्या करते हुए ‘क्रीमी लेयर’ सिद्धांत का प्रतिपादन किया है।

याचिका में यह की गई मांग

अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता द्वारा उपरोक्त सिद्धांत के तारतम्य में मध्य प्रदेश शासन के अंतर्गत हो रहे सभी इक्कीस विभागों में आरक्षण उपयुक्त वर्गीकरण करने हेतु माँग की थी। सभी नेशनल लॉ स्कूलों में क्लैट (CLAT) परीक्षा कराने वाली क्लैट कंसोर्टियम को भी पक्षकार बनाकर उसमे लागू किए जाने वाले आरक्षण से आईएएस, आईपीएस एवं अन्य क्लास-1 वर्ग के अफसरों के बच्चों एवं आश्रितों को भी आरक्षण की श्रेणी से निष्कासित करने हेतु माँग की गयी। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ती श्री बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली युगलपीठ ने कहा - “संविधान को पचहत्तर वर्ष हो चुके है और आरक्षण लागू करने वाले विधायिका एवं कार्यपालिका को यह समझना चाहिए की आरक्षण का लाभार्थी कौन होगा एवं कौन नहीं। जो निर्णय संविधान पीठ द्वारा एक अगस्त को दिया गया उसमें इसलिए यह अभिमत जाहिर किया गया ताकि शासन एवं विधायिका इस बात को समझते हुए आरक्षण को उन्ही व्यक्तियों तक पहुचाये, जिनके लिए वह आवश्यक है, न कि उनको जो इसका पहले ही लाभ उठाकर काफ़ी विकसित हो चुके हैं।”

प्रदेश के सभी विभागों को बनाया गया पक्षकार

हालाँकि युगलपीठ ने याचिका को इस स्तर पर स्वीकार न करने की इच्छा ज़ाहिर करने पर याचिकाकर्ता ने यह कहकर याचिका वापस ली की वह राज्यशासन के समक्ष 1994 के अधिनियम में उपयुक्त संशोधन हेतु प्रतिवेदन देंगे। याचिका प्रतिवेदन देने हेतु वापस करते हुए उच्च न्यायालय द्वारा निराकृत कर दी गई। याचिका में एमपीपीएससी को भी पक्षकार बनाया था एवं MPPSC द्वारा की जा रही नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देते हुए यह मांग की थी की जब तक ‘क्रीमी लेयर’ के संबंध में राज्य शासन द्वारा पॉलिसी नहीं बनाई जाती, तब तक एमपीपीएससी आईएएस, आईपीएस एवं सभी वर्ग एक के शासकीय अफसरों के बच्चों को मेरिट में आरक्षित वर्ग में स्थान न दे। जिन इक्कीस विभागों को पक्षकार बनाया गया था, उनमें ग्रह विभाग, राजस्व विभाग, पर्यावरण गृह वन विभाग, नगरीय विकास एवं निकाय विभाग, कृषि विभाग, ऐसे अन्य विभागों को पक्षकार बनाते हुए याचिका दायर की गई थी।