रफीक खान
भारत की सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर बुलडोजर संस्कृति पर प्रहार करते हुए कहा कि बुलडोजर न्याय किसी भी कीमत पर संवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता। यह पूरी तरह असंवैधानिक है और किसी भी व्यक्ति का मकान सिर्फ इसलिए नहीं गिराया जा सकता कि उसे पर अपराध का आरोप लग गया है। यह सिर्फ अवैध और असंवैधानिक रास्ता है। सुप्रीम कोर्ट में भी स्पष्ट कर दिया कि कोई भी कार्यपालक अधिकारी जज नहीं हो सकता, वह आरोपी को दोषी करार नहीं दे सकता और उसके ही आधार पर घर भी नहीं गिरवा सकता। Someone's house cannot be demolished just on the basis of crime, Supreme Court expressed strong objection on bulldozer justice.
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच ने इस मामले पर फैसला सुनाया। सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि यदि कार्यपालक अधिकारी किसी नागरिक का घर मनमाने तरीके से सिर्फ इस आधार पर गिराते हैं कि उस पर किसी अपराध का आरोप है तो यह कानून के सिद्धांतों के विपरीत है। बेंच ने कहा कि यह पूरी तरह असंवैधानिक होगा कि लोगों के मकान सिर्फ इसलिए ध्वस्त कर दिए जाएं कि वे आरोपी या दोषी हैं। कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना ढहाने की कोई भी कार्रवाई नहीं की जाएगी और ये कदम या तो स्थानीय नगरपालिका के नियमों के अनुसार निर्धारित समय पर उठाए जाएंगे या फिर नोटिस जारी करने के 15 दिन के भीतर उठाए जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि पब्लिक प्लेस के संबंध में अदालत के निर्देश लागू नहीं होंगे। बेंच ने स्पष्ट किया कि उसके निर्देश उन मामलों में लागू नहीं होंगे जहां सड़क, गली, फुटपाथ, रेलवे लाइन या किसी नदी या जल निकाय जैसे किसी सार्वजनिक स्थान पर कोई अनधिकृत संरचना है। इसके साथ ही कोर्ट का आदेश उन मामलों में भी लागू नहीं होंगे जहां किसी अन्य कोर्ट ने ध्वस्तीकरण का आदेश दिया है। नदी या जलाशय के किनारे अगर कोई अवैध निर्माण हुआ है या फिर किसी कोर्ट के आदेश से डेमोलेशन का आदेश जारी हुआ है तो भी उक्त निर्देश वहां लागू नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न राज्यों में चल रही इस तरह की मनमानी कार्रवाई को इंगित करते हुए व्याप्त आशंकाओं को दूर करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए कुछ निर्देश जारी करना जरूरी समझा है।