रफीक खान
सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया ने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग को कड़ी फटकार लगाई है। एक याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि मध्य प्रदेश पीएससी द्वारा ना सिर्फ गलत तरह की चालों से अभ्यर्थियों को परेशान किया बल्कि गलत जानकारी के आधार पर हाई कोर्ट को गुमराह करते हुए आदेश पारित करवा लिए। सुप्रीम कोर्ट ने युवा अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता की बहस के बाद यह पाया कि अनुचित तरीके से चयन प्रक्रिया को स्थगित किया गया, जिससे बड़े पैमाने पर उम्मीदवारों को परेशान होना पड़ा है। 6 सप्ताह के भीतर भर्ती प्रक्रिया, चयन प्रक्रिया को संपूर्ण करने तथा रोके गए रिजल्ट तत्काल घोषित करने के आदेश भी पारित किए गए। SC reprimanded MP PSC, ordered recruitment and declaration of results
इस संबंध में जानकारी देते हुए अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने बताया कि याचिकाकर्ता अमीन खान द्वारा उच्च न्यायालय के फरवरी 2023 के निर्णय को चुनौती देते हुए विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। पूर्व में सुको ने MPPSC को न्यायालय के समक्ष अधूरी जानकारी देने पर कड़ी लताड़ भी लगायी थी। जिसके पश्चात MPPSC ने अपनी गलती स्वीकार ली। याचिकाकर्त्ता की और से अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता उपस्थित हुए एवं MPPSC और राज्य शासन की ओर से ASG के. एम. नटराज ने पैरवी की। MPPSC द्वारा वर्ष जुलाई 2021 में चयन प्रक्रिया प्रारम्भ करते हुए प्रदेश भर के शासकीय, अर्ध शासकीय संस्थाओं में नियुक्ति हेतु पद निकाले गए थे। परीक्षा संचालित करने के पश्चात कई पदों के परिणाम इस आधार पर रोक लिए गए थे की वे पद त्रुटि पूर्वक विज्ञापन में रिक्त उल्लेखित हो गए थे, जबकि वे रिक्त नहीं थे। इसके विरुद्ध उच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर हुई, जिनको यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया गया कि परीक्षा में बैठने वाले उम्मदवारो का कोई अधिकार नहीं होता कि वे चयन कराने वाली संस्था के विरुद्ध यह मांग करे कि जिन पदों को विज्ञापित किया गया था, उनको भरा जाए।
रिव्यू याचिका भी हुई थी खारिज
उच्च न्यायलय के आदेश के विरुद्ध रिव्यू याचिका भी इस आधार पर ख़ारिज कर दी गयी की शासन द्वारा रिक्त पद त्रुटि पूर्वक पूर्व में विज्ञापित कर दिए गए थे। इसमें से कुछ इच्छुक अभ्यर्थी द्वारा सुको में विशेष अपीलीय याचिका दायर की गयी, जिसमें यह कहा गया कि MPPSC द्वारा गलत तथ्य प्रस्तुत करते हुए याचिका निरस्त कराई गई एवं न्यायालय को गुमराह किया गया, जबकि शासन की वेबसाइट पर पद आज भी रिक्त है। सुको ने MPPSC को पूर्व में आड़े हाथो लेते हुए चेतावनी दी थी की अगर गलत जानकारी उसके समक्ष प्रस्तुत की गयी तो विपरीत आदेशों के लिए उनके अफसर तैयार रहे। उसके पश्चात MPPSC द्वारा सुको में सही स्थिति रखते हुए ये माना कि उच्च न्यायालय के समक्ष तथाकथित जानकारी देने में त्रुटि हो गयी, जिसमें यह पाया गया कि पद गलत तरीके से विलोपित कर दिए गए थे। इस पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता गुप्ता ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय को गुमराह कर गलत तथ्य प्रकट कर याचिका निरस्त कराई गई, जो की अब सही तौर पर न्यायालय के समक्ष सम्मुख है। जिस चयन प्रक्रिया को मूल्य विज्ञापन के विपरीत जा कर स्थगित कर दिया गया था, उसको यथावत करते हुए पूर्ण किया जाए।
ये दलीलें भी दी गई
श्री गुप्ता द्वारा यह भी तर्क दिया गया की MPPSC द्वारा अब ये त्रुटि न्यायलाय की जानकारी में लाने पर यह आवश्यक है की वही चयन प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाये, जिसको लोक सेवा आयोग द्वारा मध्य मे ही निरस्त करते हुए रिजल्ट रोक लिए गए थे। श्री गुप्ता के तर्कों पर सुको की युगल पीठ ने जब ये पाया की मूल्य विज्ञापन मे पद सही विज्ञापित हुए थे, जबकि अनुचित तरीके से चयन प्रक्रिया को स्थगित किया गया, वह अनुचित था। सुको ने MPPSC को आदेशित किया की चयन प्रक्रिया को आगे ले जाते हुए 6 सप्ताह के अंदर उसे सम्पूर्ण किया जाए एवं जो रिजल्ट रोके गए थे उनको घोषित किया जाए। इन निर्देशों के साथ सुको ने अपीली याचिका को अंतिम रूप से स्वीकार करते हुए निराकृत किया।