रफीक खान
अनाज के सरकारी भंडारण और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सुरक्षित किए जाने वाले खाद्यान्न की व्यवस्था मध्यप्रदेश में पूरी तरह भगवान भरोसे चल रही है। इस व्यवस्था को संचालित- संधारित करने वाली एजेंसियों के अधिकारी करोड़ों रुपए का बारा न्यारा कर मालामाल हो रहे हैं। चाहे जब समाचार पत्रों में सुर्खी बनने वाली खबरों की अगर हकीकत देखी जाए तो इस सब के पीछे इन एजेसियों के जिम्मेदार चेहरे ही सामने आते हैं। हाल ही में एक मामला ऐसा सामने आया है, जहां वेयरहाउस में रखा करोड़ों रुपए का गेहूं जिम्मेदार अधिकारी ही सड़वा रहे हैं। वेयरहाउस संचालक के बार-बार आग्रह करने के बावजूद गेहूं का उठाव करने में कोई भी जहमत उठाने के लिए तैयार नहीं है।
हाल ही में मीडिया रिपोर्ट्स के जरिए एक मामला ऐसा सामने आया, जिसमें मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में स्थित बेलखेड़ा क्षेत्र के ग्राम सालीवाडा तहसील शहपुरा के तीन वेयरहाउस में वर्ष 2018 से गेहूं रखा हुआ है। शिव वेयरहाउस में 18 हज़ार क्विंटल, नर्मदा वेयरहाउस में 10 हज़ार क्विंटल तथा श्री कृष्णा वेयरहाउस में 20 हज़ार क्विंटल गेहूं का भंडार है। नियमानुसार गेहूं की नियमित निगरानी होती है। वेयरहाउस में खाद्यान्न का भंडारण करने के बाद उसकी चाबी सरकारी एजेंसी और उनके अधिकारियों के पास होती है। वही निर्धारित समयावधि पर वेयरहाउस पहुंचते हैं और उनकी मौजूदगी में पूरा निरीक्षण किया जाता है तथा कीटनाशक दवाइयां व अन्य रसायनों का छिड़काव भी होता है। इसके बाद पुनः वेयरहाउस लॉक कर दिए जाते हैं। अब बहुत छोटी और मोटी सी बात है कि जब कांक्रीट की इमारत के भीतर रखा हुआ अनाज सरकारी एजेंसी और उसके जिम्मेदार अधिकारियों के अधीन होता है तो फिर उसमें किसी वेयरहाउस का संचालक भला किस तरह से लापरवाही कर सकता है या लापरवाह हो सकता है? बावजूद इसके सारा का सारा ठीकरा वेयरहाउस संचालक पर फोड़ दिया जाता है।
कचरे की टोकरी में फेके जा रहे लेटर
अगर शिव वेयरहाउस की ही बात करें तो इस वेयरहाउस के संचालक राजीव पटेल एक बार नहीं अनेक बार एफसीआई Food Corporation of India के अलावा जितनी भी सरकारी एजेंसियां हैं, सभी को अनेक बार पत्र लिख चुके हैं। उनका सीधा सा कहना है कि वर्ष 2018 से भंडारित यह गेहूं खराब होने की स्थिति में पहुंच रहा है। इसका उठाव होना बेहद जरूरी है, लेकिन किसी भी अधिकारी के कान में जूं नहीं रेंग रही है। वेयरहाउस संचालक के निरंतर पत्रों को कचरे की टोकरी में फेंका जा रहा है। अब करोड़ों रुपए का अगर यह गेहूं सड़ रहा है तो उस जिम्मेदार विभाग के जिम्मेदार अधिकारी की जिम्मेदारी क्यों सुनिश्चित नहीं होना चाहिए?
दीपक सक्सेना के अनुभव का लाभ मिलना चाहिए
वर्तमान में बहुत संयोग है कि जबलपुर जिले के कलेक्टर दीपक सक्सेना को वेयरहाउसिंग का अच्छा खासा अनुभव है। वे जबलपुर की कलेक्ट्री के पहले वेयरहाउसिंग कारपोरेशन के प्रबंध संचालक के पद पर रहे और वहां उन्होंने उल्लेखनीय तथा उत्कृष्ट कार्य किए हैं। उनकी इस उत्कृष्टता का लाभ जबलपुर को मिलना चाहिए और कम से कम जो जिम्मेदार अधिकारी करोड़ों रुपए के अनाज को सड़वा रहे हैं, उसमें मिलावट करवा रहे हैं, उसकी कालाबाजारी करवा रहे हैं, उनके इस कृत्य को अपराध की श्रेणी में लाकर कड़ी से कड़ी सजा मिलना चाहिए। शिव वेयर हाउस के संचालक राजीव पटेल ने मध्य प्रदेश वेयरहाउसिंग तथा लॉजिस्टिक्स कॉरपोरेशन के शहपुरा शाखा प्रबंधक, प्रबंधक तथा महाप्रबंधक समेत अनेक अधिकारियों को पत्र लिखकर गेहूं की स्थिति तथा 6 वर्ष पूर्व किए गए एग्रीमेंट और उसकी दर पर भी सुनवाई का आग्रह किया लेकिन उसे भी अनसुना कर दिया गया। राजीव पटेल का कहना है कि 6 साल पहले ₹55 प्रति मेट्रिक टन की दर से यह एग्रीमेंट किया गया था लेकिन अब तक इस दर में काफी इजाफा हो चुका है, अतः उन्हें उसे डर के मुताबिक भुगतान किया जाए। साथ ही गेहूं भंडारण का 6 वर्ष पूर्ण हो चुका है और वह खराब होने की स्थिति में पहुंच रहा है, अतः इसका उठाव प्राथमिकता से कराया जाना चाहिए। कई वेयरहाउस की स्थिति यह है कि वहां अनाज पहुंचता है और एफसीआई 2 महीने 3 महीने में ही गेहूं का उठाव करवा लेती है। कुल मिलाकर यह है कि यह पूरी व्यवस्था अफसरशाही का शिकार हो रही है। नियम - कायदे अफसर की मनमानी पर निर्भर और अधीन होकर रह गए हैं। जिसमें सुधार किया जाना बहुत जरूरी है। सिर्फ अधिकारियों के तबादलों और उनके निलंबन से कोई बात बनने वाली नहीं है, जब तक अनाज से जुड़ी इस व्यवस्था के लापरवाहों और गुनहगारों को अपराधी की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाएगा।