रफीक खान
मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में यूं तो एक से बढ़कर एक धार्मिक स्थलों की भरमार है लेकिन पुण्य सलिला नर्मदा तट तिलवारा घाट के समीप एक ऐसा स्वयंभू शिवलिंग मंदिर है, जो नाद ब्रह्म पर आधारित देश में इकलौता है। श्रावण मास में इसका अपना विशेष महत्व है। यहां देशभर से लोग श्रावण मास में अभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं। मंदिर की ढेर सारी अपनी विशेषताएं हैं, उनमें से एक यह है कि जब कोई साधक अपनी साधना में लीन हो जाता है तो उसे ॐ की गुंजन जैसी ध्वनि सुनाई देती है। स्वयंभू शिवलिंग की आराधना आदि शंकराचार्य के गुरु गोविंद पाद द्वारा की गई।
शंकराचार्य आश्रम रमनगरा तिलवारा, यज्ञशाला, नर्मदेश्वर महादेव मंदिर के प्रबंधक ब्रह्मचारी शाश्वतानंद ने "खबर अपडेट इंडिया" से विशेष चर्चा के दौरान बताया कि जबलपुर नर्मदा के मुकुट क्षेत्र प्राचीन रमनगरा ग्राम तिलवारा में नर्मदा तट पर स्थित अत्यंत प्राचीन गुरु गोविंद पाद द्वारा पूजित स्वयंभू शिवलिंग विराजित है। शिवलिंग जिस मंदिर में स्थापित है, इस मंदिर की वास्तु कला नाद ब्रह्म वास्तुकला पर आधारित है। जिसमें उच्चारित मंत्र दुगुनी शक्ति से आकाशगंगा से सीधे संपर्क स्थापित करते हैं। अतः इस मंदिर में वैदिक पद्धति से की गई उपासना व्यर्थ नहीं जाती है। ब्रह्मचारी शाश्वतानंद के अनुसार धनबाद के एक प्रसिद्ध कोयला व्यापारी, जिसे कोई संतान नहीं थी, उसे भगवान शिव ने स्वप्न में आकर इस मुकुट क्षेत्र में यज्ञ करवाने को कहा। स्वप्न के बाद उसे व्यापारी द्वारा नर्मदा के मुकुट क्षेत्र में आकर अखंड 11 माह तक वृहद पार्थिवेश्वर चिंतामणि महायज्ञ का आयोजन किया। ये अयोजन 13 मैं 1959 से लगातार 11 माह तक अनवरत चलता रहा । इस यज्ञ हेतु विशेष वृहद यज्ञ वेदी का निर्माण वैदिक वास्तु पर निर्माण किया गया जो आकर्षण का केंद्र है। इस यज्ञ के पश्चात सेठ को संतान की प्राप्ति हुई।
महा भैरव यंत्र और पंचमुखी शिव
ब्रह्मचारी शाश्वतानंद ने बताया कि इस मंदिर में महा भैरव यंत्र की स्थापना की गई है, जो कि अपने आप में विलक्षण है। कुछ वर्षों पूर्व इस भूमि का दान शंकराचार्य जी को किया गया था। जिस पर वर्तमान में शंकराचार्य आश्रम मौजूद है। इस मंदिर में श्रावण मास में प्रतिदिन महारुद्राभिषेक का आयोजन किया जा रहा है, जो अनवरत अनेक वर्षों से निरंतर जारी है। मंदिर में भगवान शिव की पूजन करने एवं विशेष अनुष्ठान करने से संतानहीन व्यक्तियों को संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है। इस मंदिर में पंचमुखी भगवान शिव की मूर्ति भी विराजित हैं।
ध्यान स्थिर होने पर ऐसा होता है महसूस
ब्रह्मचारी शाश्वतानंद कहते हैं कि इस मंदिर में जब मन ध्यान में स्थिर हो जाता है या कोई व्यक्ति पूर्ण मौन में प्रवेश करता है, तब वह शिव की कृपा से नाद ब्रह्म को सुन सकता है। इस मौन साधना के दौरान नाद ब्रह्म पर आधारित इस मंदिर में साधक को झींगुर की आवाज़ या ॐ की गुंजन जैसी ध्वनि सुनाई दे सकती है. यह ध्वनि या नाद ब्रह्म व्यक्ति को परब्रह्म में लीन कर देती है। नाद ब्रह्म को सुनने का आदी होने पर ध्यान साधना के बाद भी इसे सुना जा सकता है। तब ऐसा लगता है कि ध्वनि कानों में बाहर से आ रही है, लेकिन वास्तव में यह भीतर से आ रही है। इस नाद ब्रह्म पर आधारित देश का एकमात्र मंदिर है। शिवपुराण में अनेकानेक स्थानों पर 'ध्यान योग' की महिमा गाई गई है। पुराण की वायवीय संहिता में वर्णित है- 'पंच यज्ञों में ध्यान और ज्ञान-यज्ञ ही मुख्य है। जिनको ध्यान अथवा ब्रह्मज्ञान प्राप्त हो गया है, वे काल के चक्रवातों में नहीं उलझते। वे भव-सिंधु से उत्तीर्ण हो जाते हैं। 'शास्त्रों के अनुसार मस्तक के ऊपरी भाग में ब्रह्मनाद की दिव्य धुनें निरंतर गूँजती रहती हैं। शिव जी का डमरू इस भीतरी नाद का ही प्रतीक है। मंदिर इसी भीतरी अनहद नाद का प्रतीक है। उठो और पूर्ण तत्त्ववेत्ता गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर इस नाद को जागृत कराओ! क्योंकि यह ब्रह्मनाद अनियंत्रित मन को ईश्वर में लय करने की उत्तम युक्ति है- "न नादसदृशो लयः (शिवसंहिता)।"