दलित का व्यक्तिगत अपमान SC-ST अधिनियम के तहत अपराध नहीं: SC Personal insult to Dalit not an offense under SC-ST Act: SC - khabarupdateindia

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दलित का व्यक्तिगत अपमान SC-ST अधिनियम के तहत अपराध नहीं: SC Personal insult to Dalit not an offense under SC-ST Act: SC


रफीक खान
अग्रिम जमानत के एक मामले में सुनवाई करते हुए भारत की सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय से संबंधित किसी व्यक्ति को उसकी जाति, जनजाति या अस्पृश्यता की अवधारणा का हवाला दिए बिना अपमानित करना या नीचा दिखाना एससी एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के कड़े प्रावधानों के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। बिना किसी जाति आधारित टिप्पणी या बात कहे दलित समुदाय के किसी व्यक्ति का अपमान उक्त अधिनियम की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कहा जाता है कि ऑनलाइन मलयालम समाचार चैनल के पत्रकार साजन स्कारिया पर एससी एसटी अधिनियम के तहत मुकदमा कायम किया गया है। एससी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सीपीएम विधायक पी वी श्रीनिजन को "माफिया डॉन" कहने के कारण स्कारिया पर एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था। ट्रायल कोर्ट और केरल हाई कोर्ट दोनों ने पहले उन्हें गिरफ्तारी से पहले जमानत देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे बी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने स्कारिया को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि "एससी/एसटी समुदाय के किसी सदस्य का जानबूझकर अपमान या धमकी देने से जाति-आधारित अपमान की भावना पैदा नहीं होती।" कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसा कोई प्रथम दृष्टया सबूत नहीं है, जिससे पता चले कि स्कारिया ने यूट्यूब पर वीडियो प्रकाशित करके एससी/एसटी समुदाय के खिलाफ दुश्मनी, नफरत या दुर्भावना को बढ़ावा देने का इरादा किया था। "वीडियो का अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों से कोई लेना-देना नहीं है। उनका निशाना सिर्फ शिकायतकर्ता (श्रीनिजन) था।" जस्टिस पारदीवाला द्वारा लिखे गए 70-पृष्ठ के फैसले में, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि एससी/एसटी अधिनियम का उद्देश्य अस्पृश्यता जैसी प्रथाओं से उत्पन्न अपमान या धमकी को संबोधित करना या जातिगत श्रेष्ठता के ऐतिहासिक रूप से स्थापित विचारों को सुदृढ़ करना है। "केवल उन मामलों में जहां जानबूझकर अपमान या धमकी अस्पृश्यता की प्रचलित प्रथा के कारण या ऐतिहासिक रूप से स्थापित विचारों जैसे कि 'उच्च जातियों' की 'निचली जातियों/अछूतों' पर श्रेष्ठता, 'पवित्रता' और 'अपवित्रता' की धारणाओं आदि को सुदृढ़ करने के लिए की जाती है, इसे 1989 के अधिनियम द्वारा परिकल्पित प्रकार का अपमान या धमकी कहा जा सकता है।" शिकायत करता चाहे तो इस कार्य के खिलाफ मानहानि का प्रकरण पेश कर सकते हैं।