CJI के सामने PM ने अलापा न्याय सुधार का राग, कॉलेजियम सिस्टम पर साधा निशाना, लाल किले की प्राचीर से निकली बात - khabarupdateindia

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CJI के सामने PM ने अलापा न्याय सुधार का राग, कॉलेजियम सिस्टम पर साधा निशाना, लाल किले की प्राचीर से निकली बात


रफीक खान
In front of CJI, PM chanted the slogan of justice reform, targeted the collegium system, words came from the ramparts of the Red Fort

78वें स्वाधीनता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के सामने न्याय सुधार की जरूरत पर फोकस करते हुए एक बार फिर नई बहस छेड़ दी है। इस बहस के आड़ में कॉलेजियम सिस्टम पर भी पूरा निशान रहेगा। लाल किले की प्राचीर से शुरू हुई है बात आगे कहां तक जाएगी? यह तो समय ही बताएगा। यह बात जरूर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पहले कार्यकाल से ही कॉलेजियम सिस्टम को तहस-नहस करने की इच्छा रखते थे और इसके लिए वह वकायदा कानून भी ले आए थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस कानून को फौरन रद्द कर दिया था। और यह भी स्पष्ट किया था कि जजों की नियुक्ति कॉलेजियम सिस्टम से ही होगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रा दिवस पर लाल किले के प्राचीर से अपनी सरकार में रिफॉर्म्स पर किए कामों की पूरी सूची पढ़ी और कहा कि अब न्यायिक सुधार समय की मांग है। पीएम ने बताया कि देशवासियों से 'विकसित भारत 2047' पर राय मांगी गई तो लोगों ने दिल खोलकर अपने सुझाव दिए। उन्होंने बताया कि इसी में एक सुझाव यह भी है कि देश में न्याय मिलने में बहुत देरी हो रही है जिसे दूर किए बिना विकसित भारत का संकल्प पूरा नहीं हो सकता है। मोदी जब न्यायिक सुधार की बातें कर रहे थे तब सामने मेहमानों की कतार में देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ बैठे थे। ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के ज्यूडिशियिल रिफॉर्म के प्रयास को यह कहते हुए झटका दिया था कि उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया कॉलेजियम सिस्टम से ही होगी। सुप्रीम कोर्ट ने तब नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन (NJAC) को असंवैधानिक करार देते हुए इसे निरस्त कर दिया था। वर्ष 1993 में न्यायिक नियुक्तयों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नई व्यवस्था दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने तब 'कलेक्टिव विजडम' के सिद्धांत पर जोर देते हुए कॉलेजियम प्रणाली की स्थापना की थी। कलेक्टिव विजडम का सिद्धांत सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के फैसले में 'कलेक्टिव विजडम (सामूहिक बुद्धिमत्ता)' के सिद्धांत पर जोर दिया। इसका मतलब यह था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति का निर्णय केवल मुख्य न्यायाधीश पर निर्भर न होकर, सर्वोच्च न्यायालय के अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों की सामूहिक सहमति पर आधारित होना चाहिए। इस फैसले के तहत कॉलेजियम सिस्टम की स्थापना की गई, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। ये पांचों न्यायाधीश सामूहिक रूप से हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति और प्रमोशन का निर्णय लेते हैं।