हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट यह याद रखें कि सजा के तौर पर किसी की जमानत को नहीं रोका जा सकता : Supream Court ने की UAPA Act के मामले में तल्ख टिप्पणी - khabarupdateindia

खबरे

हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट यह याद रखें कि सजा के तौर पर किसी की जमानत को नहीं रोका जा सकता : Supream Court ने की UAPA Act के मामले में तल्ख टिप्पणी


रफीक खान 
पाकिस्तान से जाली मुद्रा की कथित तस्करी के लिए गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम UAPA एक्ट के तहत गिरफ्तार किए गए एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए पूरे देश की अधीनस्थ न्यायालयों को संदेश दिया कि समय के साथ ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट कानून के एक बहुत ही सुविधा स्थापित सिद्धांत को शायद भूल गए हैं कि सजा के तौर पर जमानत नहीं रोकी जा सकती। जिम्मेदार कोर्टों को यह याद रखना होगा कि यदि राज्य संबंधित न्यायालय सहित किसी भी अभियोजन एजेंसी के पास संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अभियुक्त के पूरे सुनवाई के मौलिक अधिकार को प्रदान करने या उसकी रक्षा करने का कोई साधन नहीं है, तो राज्य किसी अन्य अभियोजन एजेंसी को इस आधार पर जमानत याचिका का विरोध नहीं करना चाहिए। वह भी यह कहते हुए कि किया गया अपराध गंभीर है। संविधान का अनुच्छेद 21 अपराध की प्रकृति पर ध्यान दिए बिना लागू होता है।

Supreame Court के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ पाकिस्तान से जाली मुद्रा की कथित तस्करी के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA Act) के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। चार साल की कैद और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि मुकदमा अभी शुरू भी नहीं हुआ, उसे जमानत देते हुए खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि चाहे कोई भी अपराध कितना भी गंभीर क्यों न हो, आरोपी को भारत के संविधान के तहत त्वरित सुनवाई का अधिकार है।
खंडपीठ ने तीन महत्वपूर्ण बातों पर फोकस किया। पहले अपीलकर्ता को 4 साल तक विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में रखा गया, जबकि उसके सह-आरोपियों को जमानत मिल गई थी। दूसरा ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोप तय नहीं किए गए और तीसरा अभियोजन पक्ष 80 गवाहों से पूछताछ करना चाहता है। मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए खंडपीठ ने जमानत के मुद्दों पर निर्णय लेते समय ट्रायल कोर्ट Trail Court और हाईकोर्ट High court द्वारा त्वरित सुनवाई और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सार को कमजोर नहीं करने की आवश्यकता पर जोर दिया। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न्याय क्षेत्र में निश्चित तौर पर मिसाल बनकर उभरेगी और इससे कई पीड़ितों को राहत भी मिलेगी।