रफीक खान
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक याचिका की सुनवाई करने के दौरान करते हुए संबंधित कलेक्टर को निर्देशित किया है कि वह धर्मस्थलों से लाउडस्पीकर हटाने के विरुद्ध प्रस्तुत किए जाने वाले आवेदन पत्रों पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के आधार पर निर्णय करें। प्राप्त होने वाले आवेदन पत्रों का निराकरण 60 दिन के भीतर किया जाए। हाई कोर्ट ने संबंधित कलेक्टर को खासतौर पर यह भी निर्देश दिया है कि मिलने वाले आवेदन पत्रों को स्वीकार या निरस्त करने का क्या आधार बनाया या माना गया है? यह आवेदकों को स्पष्ट रूप से बताना होगा।
जानकारी के मुताबिक कहा जाता है कि इंदौर के आजाद नगर निवासी अल्लानूर अब्बासी ने हाईकोर्ट में प्रस्तुत याचिका में कहा था कि पुलिस ने राज्य शासन के आदेश का हवाला देते हुए आजाद नगर मस्जिद पर लगे लाउड स्पीकर हटा दिए हैं। याचिकाकर्ता इस मस्जिद की प्रबंध कमेटी के सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि इसका विरोध करते हुए 28 मई, 2024 को एक आवेदन पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को दिया गया था, लेकिन पुलिस ने इस आवेदन पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया है। याचिका में कहा गया था कि प्रबंध कमेटी सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय गाइडलाइन के हिसाब से लाउड स्पीकर की आवाज तय डेसीबल से कम रखने को तैयार है। उन्होंने यह बात पुलिस अधिकारियों को भी बताई थी, लेकिन उन्होंने बावजूद इसके लाउड स्पीकर धर्मस्थल से उतार दिए। हाईकोर्ट ने मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद यह कहते हुए याचिका निराकृत कर दी कि याचिकाकर्ता इस संबंध में एक नया आवेदन कलेक्टर इंदौर के समक्ष प्रस्तुत करें और कलेक्टर 60 दिन के भीतर इस आवेदन पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक निर्णय लें। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश शासन के नए मुख्यमंत्री के रूप में डॉक्टर मोहन यादव के शपथ लेने की तत्काल बाद ही इस संबंध में मध्य प्रदेश सरकार ने आदेश जारी किए थे और मध्य प्रदेश सरकार के आदेश के बाद जिला और पुलिस प्रशासन ने पूरे प्रदेश में धर्मस्थलों से लाउड स्पीकर उतरवा लिए थे। तब से अब तक इस मुद्दे पर एक जैसी स्थिति कहीं नहीं बन पाई है। जहां लोग जागरुक है, वहीं कानून का हवाला देकर संघर्ष कर रहे हैं और जहां अशिक्षित और उदासीन है, वहां खामोशी के साथ मनचाही कार्रवाई को स्वीकार करने मजबूर है। इस याचिका में पक्षकार की ओर से अधिवक्ता इम्तियाज अहमद बहना ने पैरवी की।