नाराजगी, साहस, ड्रामा या फिर..., 2 दिन में ही... ठिकाने लग गई! Resentment, courage, drama or something else..., within 2 days... it came to an end! - khabarupdateindia

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नाराजगी, साहस, ड्रामा या फिर..., 2 दिन में ही... ठिकाने लग गई! Resentment, courage, drama or something else..., within 2 days... it came to an end!



रफीक खान
मध्य प्रदेश की सियासत में भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज आदिवासी नेता और कैबिनेट मिनिस्टर नागर सिंह चौहान की पार्टी और मुख्यमंत्री से सामने आई दो दिन पहले की नाराजगी के किस्से अभी भी खत्म नहीं हो रहे हैं। दरअसल भारतीय जनता पार्टी जैसे संगठन में किसी नेता के द्वारा चलती धारा के विपरीत आवाज उठाने का दम बहुत कम लोगों में देखने को मिलता है। गाहे बगाहे ही ऐसे मामले सामने आते हैं, जब कोई नेता यह साहसिक कदम उठा पता है। नागर सिंह चौहान ने न सिर्फ अपने मंत्री पद बल्कि पत्नी की सांसदी से भी इस्तीफा देने का मीडिया में जब ऐलान किया तो भाजपा में हड़कंप सा मच गया था। संगठन और सरकार के वह लोग जो खुद को उपेक्षित तो मानते हैं, पर कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं, उन्होंने भी खुशी मनाने और मजा लेने में कोई चूक नहीं की। हालांकि नागर सिंह चौहान का यह पैंतरा अब एक तरह से पहेली सा बन गया है।

कैबिनेट मिनिस्टर नागर सिंह चौहान के इस निर्णय को पहले जो लोग साहस मान रहे थे, वे खुद भी पशोपेश में है। लोगों को समझ में ही नहीं आ पा रहा कि आखिर नागर सिंह चौहान वाकई सरकार से नाराज थे और उस नाराजगी को लेकर उन्होंने साहस दिखाया या फिर नाराजगी के बीच यह कोई ड्रामा था या वह इस स्टंट के जरिए अपनी कुछ चाहतों को पूरा करवाने की भूल कर बैठे। उनके इस्तीफा की घोषणा के बाद जब वे दिल्ली गए और यहां हल्ला मचा कि उन्हें दिल्ली तलब किया गया है लेकिन बाद में पता चला कि उन्हें दिल्ली बुलाया नहीं गया था, वे खुद अपनी मर्जी से भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से मुलाकात करने के लिए गए थे। वहां उन्हें 3 घंटे इंतजार करना पड़ा और इसके बाद भी बैरंग लौटने को मजबूर हुए। इत्तेफाक था या फिर सौजन्यता कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें समय पर समझाईश दे डाली। निश्चित तौर पर शिवराज ने उन्हें समझाते हुए कहा होगा कि पार्टी में इस तरह के विरोध का कोई मूल्य नहीं है। ज्यादा जोर लगाओगे तो उल्टा नुकसान में रहोगे। 10 साल प्रदेश में राज करने के बाद कितनी खामोशी के साथ शिवराज को खुद ही बदल दिया गया, यह भी अपने आप में ताजा उदाहरण ही है। भाजपा संगठन में इस तरह की चर्चा भी रही कि शायद कैबिनेट मिनिस्टर नागर सिंह चौहान को मुगालता हो गया था कि वे जिस क्षेत्र से चुने जा रहे हैं, वह आदिवासी बाहुल्य तो है ही और आदिवासियों के वही सबसे बड़े चेहरे हैं। इसी सबके चलते लोकसभा चुनाव में उनकी पत्नी भी सांसद चुन ली गई, पर भाजपा के अपने समीकरण है। नागर सिंह चौहान की नाराजगी को कोई तवज्जो ना मिलना और औपचारिक रूप से प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव, प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा, तथा संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा की मौजूदगी में जिस तरह से मामले की इतिश्री हुई उसने माननीय की... ठिकाने लगा दी।