रफीक खान
समूचे भारतवर्ष में 1 जुलाई 2024 से नए आपराधिक कानून लागू हो जाएंगे। संसद द्वारा गत वर्ष यह कानून पारित किए गए थे। संसद द्वारा पारित इन कानूनो का विपक्षी पार्टियां अभी भी विरोध जता रही है तथा उसे रोकने की मांग कर रहे हैं लेकिन 1 जुलाई सोमवार से अब यह अमल में आ जाएंगे। इस परिवर्तन के तहत जीरो पर एफआईआर दर्ज करने की व्यवस्था भी पूरे भारतवर्ष में हो जाएगी। एफआईआर दर्ज करवाने के लिए फरियादी को भौतिक तौर पर उपस्थित होने की अनिवार्यता भी नहीं होगी, बल्कि वह आधुनिकता के साथ ऑनलाइन अपनी बात को कह सकेगा। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के पीछे पीड़ितों को समय पर न्याय दिलाने का मकसद बताया गया है।
इन तीनों कानूनों के तहत जीरो एफआइआर, आनलाइन पुलिस शिकायत, इलेक्ट्रानिक माध्यमों से समन भेजना और घृणित अपराधों में क्राइम सीन की वीडियोग्राफी अनिवार्य हो जाएगी। जानकारी के अनुसार कहा जाता है कि एक व्यक्ति सशरीर पुलिस स्टेशन में उपस्थित हुए बगैर भी इलेक्ट्रानिक माध्यमों से घटना की रिपोर्ट कर सकता है। इससे पुलिस को भी त्वरित कार्रवाई में मदद मिलेगी। नए कानून में जीरो एफआइआर की शुरुआत की गई है। पीडि़त किसी भी थाना क्षेत्र में अपनी एफआइआर दर्ज करा सकता है। पीडि़त को एफआइआर की निशुल्क कॉपी भी मिलेगी। सशक्त जांच के लिए गंभीर आपराधिक मामलों में सुबूत जुटाने के लिए क्राइम सीन पर फारेंसिक विशेषज्ञों का जाना अनिवार्य। सुबूत एकत्र करने की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी अनिवार्य होगी। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध में जांच एजेंसियों को दो महीने के अंदर जांच पूरी करनी होगी। 90 दिनों के अंदर पीडि़तों को केस में प्रगति की नियमित अपडेट देनी होगी। अपराध के शिकार महिला और बच्चों को सभी अस्पतालों में फर्स्ट एड या इलाज निशुल्क मिलने की गारंटी होगी। चुनौती भरी परिस्थितियों में भी पीडि़त जल्द ठीक हो सकेंगे। गवाहों की सुरक्षा व सहयोग के लिए सभी राज्य सरकारें विटनेस प्रोटेक्शन प्रोग्राम लागू करेंगी। दुष्कर्म पीडि़ताओं को आडियो-वीडियो माध्यम से पुलिस के समक्ष बयान दर्ज करने की छूट मिलेगी। नए कानून में मामूली अपराधों के लिए दंडस्वरूप सामुदायिक सेवा की विधा शुरू। समाज के लिए सकारात्मक योगदान देकर दोषी अपनी गलतियों को सुधारने का काम करेगा। सुनवाई में देरी से बचने और न्याय की त्वरित बहाली के लिए कोई अदालत किसी मामले को अधिकतम दो बार ही स्थगित कर सकेगी। सभी कानूनी कार्यवाही इलेक्ट्रानिक माध्यमों से हो सकेगी पीड़ित महिला की अदालती सुनवाई महिला मजिस्ट्रेट ही करेगी। अन्यथा संवेदनशील मामले में किसी महिला की उपस्थिति में पुरुष मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज होगा। 15 साल से कम आयु, साठ साल से अधिक और दिव्यांगो व गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को पुलिस स्टेशन में पेश होने से छूट होगी। इस तरह से अशक्त लोगों को उनके रहने वाले स्थान पर ही पहुंच कर मध्य प्रदान की जाएगी। परिवर्तन को सुलभ तथा सुचारू मूर्त रूप देने के उद्देश्य से सभी राज्यों में पिछले 15 दिनों से प्रशिक्षण अभियान भी चलाया जा रहा है।