रफीक खान
उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में एक दलित वर्ग की नाबालिक बच्ची के साथ गैंगरेप के बाद बजाए रिपोर्ट लिखने और उस पर कड़ी कार्रवाई करने के थाना प्रभारी तिलकधारी सिंह ने थाने के भीतर ही उसे हवस का शिकार बना डाला। दिल दहला देने और कानून की धज्जियां उड़ाने वाली इस घटना के बाद थाना प्रभारी ने खुद को कानूनी शिकंजे से सुरक्षित रखने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपनी शातिराना चाल से राहत भी हासिल कर ली। हालांकि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए थाना प्रभारी के घृणित कृत्य को क्षमा योग्य नहीं माना तथा उसे तत्काल गिरफ्तार करने के आदेश दिए गए। थाना प्रभारी तिलकधारी सिंह को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के परिपालन में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है।
इस संबंध में मिली जानकारी के अनुसार कहा जाता है कि Supreme court शीर्ष अदालत का यह आदेश नाबालिग बच्ची की मां की याचिका पर आया। जिसने आरोपी को जमानत दिए जाने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। SC के जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा कि यह बेहद गंभीर स्थिति है, जहां सामूहिक बलात्कार की पीड़ित बच्ची न्याय के लिए थाने आई और आरोप है कि थाना प्रभारी ने उसके साथ थाने में बलात्कार किया। अदालत ने आरोपी तिलकधारी सिंह को सशर्त जमानत देने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि इस मामले को सरसरी तौर पर देखने के बजाय गंभीरता से विचार करने की जरूरत थी। इस मुकाम पर हमें आरोपी को जमानत देने के फैसले को वाजिब ठहराने के पीछे कोई कारण या तर्क नहीं दिखता। SC ने अपने आदेश में कहा कि ललितपुर मामले में एक भयावह स्थिति है, जहां सामूहिक बलात्कार की पीड़िता नाबालिग न्याय की तलाश में थाने आई और आरोपी थाना प्रभारी तिलकधारी सिंह ने थाने में ही उसके साथ फिर वही घिनौना अपराध किया।