रफीक खान
सिवनी बार एसोसिएशन के 11 पदाधिकारियों के निलंबन पर लगाए जाने संबंधी मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा जारी किए गए आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। उक्त संबंध में सीवनी बार एसोसिएशन की ओर से एक याचिका युवा अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने प्रस्तुत की और उन्होंने विभिन्न लीगल पॉइंट्स के अलावा यह भी कहा कि वकीलों पर जो कार्रवाई की गई है वह कुख्यात अपराधियों से भी बढ़कर है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट द्वारा जारी आदेश पर रोक लगाते हुए हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल तथा स्टेट बार कौंसिल व अन्य अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
जानकारी के मुताबिक बताया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं मनोज मिश्रा की पीठ ने उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश पर रोक लगाते हुए सिवनी जिला बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों को अंतरिम राहत प्रदान की, जिसके द्वारा उनको 30 दिन तक न्यायालय में किसी भी प्रकरण में उपस्थित होने से निलंबित किया था एवं तीन साल हेतु चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही बार काउन्सिलऑफ़ इंडिया, स्टेट बार काउन्सिल, रजिस्ट्रार जनरल - उच्च न्यायालय एवं मध्य प्रदेश कानून विभाग को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब भी माँगा है। पूर्व में उच्च न्यायालय की युगल पीठ द्वारा 20 मार्च 2024 को जिला बार एसोसिएशन सिवनी द्वारा तीन दिवसीय हड़ताल करने पर 11 पदाधिकारियों के विरुद्ध आदेश पारित करते हुए उन्हें तीस दिन तक किसी भी न्यायालय में उपस्थित होने पर प्रतिबन्ध लगाया था एवं तीन साल चुनाव लड़ने पर रोक लगायी थी। उच्च न्यायालय द्वारा तत्काल कार्यकारिणी भंग कर एडहोक कमिटी नियुक्त करने हेतु भी स्टेट बार काउन्सिल को आदेशित किया था। इसआदेश के विरुद्ध जिला बार एसोसिएशन के 11 पदाधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में तत्काल विशेष अनुमति याचिका दायर की जिस पर आज सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता, शैलेन्द्र वर्मा एवं मृगांक प्रभाकर ने पैरवी की। साथ ही बार कॉउन्सिल ऑफ़ इंडिया, स्टेट बार कॉउन्सिल, रजिस्ट्रार जनरल - उच्च न्यायालय को नोटिस चार सप्ताह में जवाब माँगा है।
कोर्ट बिल्डिंग को अन्यत्र स्थानांतरित करने का मामला
सिवनी जिला बार एसोसिएशन द्वारा वर्तमान में जिला कलेक्ट्रेट के पास स्थित जिला न्यायालय को स्थानांतरित करने के विरुद्ध वर्ष 2021 से मुहिम चलायी जा रही है। जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि कुमार गोल्हानी एवं सचिव रितेश आहूजा द्वारा पूर्व में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय को प्रतिवेदन देकर कहा गया कि वर्तमान में स्थित जिला न्यायालय की बिल्डिंग को अन्य जगह स्थानांतरित करने की बजाय उससे लगी हुई छह एकड़ रिक्त भूमि को ही आवंटित कर विकसित किया जा सकता है। पूर्व में वर्ष 2022 में उनके आवेदन पर सिवनी जिला के पोर्टफोलियो न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की अध्यक्षता में समिति गठित की गयी, जिस समिति द्वारा इस निर्णय को टाल दिया गया एवं कहा गया कि जब भी अगला निर्णय होगा, उसके पूर्व जिला बार एसोसिएशन को सूचित कर विश्वास में लेकर निर्णय लिया जाएगा।
पूर्व डीजे ने भी लिखी थी राज्य सरकार को चिट्ठी
पूर्व में जिला न्यायाधीश सिवनी द्वारा भी राज्य शासन को चिट्ठी लिखकर अनुशंसा की गयी कि वर्तमान जिला न्यायालय से लगी भूमि को ही आवंटित कर उस पर जिला न्यायालय का विस्तार किया जाए, जिस पर कोई निर्णय नहीं हुआ। मार्च 2024 के प्रथम सप्ताह में एकाएक पेपरों के द्वारा न्यूज पेपर के माध्यम से जिला बार एसोसिएशन को ज्ञात हुआ कि दूसरी जगह नयी भूमि आवंटित कर दी गयी है एवं पूर्व में दिए गए अभ्यावेदन पर कोई निर्णय नहीं हुआ। इसके विरुद्ध एसोसिएशन द्वारा तीन दिन की हड़ताल घोषित की गयी, जिस पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की युगल पीठ द्वारा स्वतः संज्ञान लेते हुए 18 मार्च को आदेशित किया कि बार एसोसिएशन की कार्यकारिणी भंग कर एडहोक कमिटी गठित की जाए। जब हड़ताल वापिस नहीं ली गयी तब उच्च न्यायालय द्वारा सभी 11 पदाधिकारियों को तीस दिन हेतु किसी भी न्यायालय में उपस्थित होने से प्रतिबंधित कर दिया गया एवं तीन साल के लिए कोई भी चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गयी। इसके विरुद्ध सभी 11 पदाधिकारियों ने सुको में विशेष अनुमति याचिका दायर की, जिस पर आज सुनवाई हुई। याचिका में यह कहा गया कि जब तत्कालीन पोर्टफोलियो न्यायमूर्ति की समिति द्वारा निर्णय को टाल दिया गया था, तब बिना जिला बार एसोसिएशन को विश्वास में लिए किस तरह से भूमि आवंटित कर दी गयी। याचिका में यह भी कहा गया कि वर्तमान न्यायालय कैंपस से लगी हुई भूमि को राज्य शासन एक बिल्डर को सौंपना चाहती है, जहाँ पर शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, एवं वाणिज्यिक गतिविधियों हेतु परिसर निर्मित किया जाना है। इसकी जगह यहाँ स्थान उपयुक्त तरीके से न्यायालय कैंपस को ही विस्तृत एवं विकसित करने हेतु उपयोग किया जाये। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने पैरवी करते हुए कहा की बिना उनको किसी भी सुनवाई का मौका दिए सभी 11 पदाधिकारियों के विरुद्ध आलोच्य आदेश पारित किया गया, जिसके द्वारा उन्हें पदों से हटाया गया, उन पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिए गए। श्री गुप्ता द्वारा तर्क दिया गया कि जिस प्रकार से उच्च न्यायालय ने कार्यवाही की है, वैसी कार्यवाही तो न्यायालय कुख्यात अपराधियों के साथ तक नहीं करती है।
अधिवक्ता गुप्ता के तर्कों पर मुख्य न्यायाधिपति की युगल पीठ ने उच्च न्यायालय के 20 मार्च 2024 के आदेश पर रोक लगा दी है।