रफीक खान
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, राज्यसभा सांसद तथा सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट विवेक कृष्ण तंनखा द्वारा दायर 10 करोड रुपए की मानहानि मामले में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा तथा पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह को हाई कोर्ट से राहत नहीं मिली है। हाईकोर्ट के जस्टिस संजय द्विवेदी ने इस मामले में किसी तरह की भी राहत देने से इनकार करते हुए कहा है कि तीनों अनावेदक संबंधित कोर्ट में आवेदन पेश कर अपना पक्ष रख सकते हैं। तीनों नेता मानहानि संबंधी मामले में जबलपुर की एमपी एमएलए विशेष कोर्ट में लोकसभा चुनाव 2024 की व्यस्तता बताते हुए उपस्थित से निजात चाहते हैं।
जानकारी के मुताबिक कहा जाता है कि दस करोड़ रुपये की मानहानि संबंधी मामले में प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष व सांसद वीडी शर्मा व विधायक भूपेन्द्र सिंह ने हाई कोर्ट की शरण ली थी। न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने अंतरिम राहत देने से इंकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से उपस्थित से छूट के लिए संबंधित न्यायालय के समक्ष आवेदन करें। जिस पर संबंधित न्यायालय विचार करेगी। अनावेदक के अधिवक्ता को याचिका की प्रति उपलब्ध कराने के निर्देश जारी करते हुए एकलपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 23 अप्रैल को निर्धारित की है। कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कृष्ण तन्खा ने एमपीएमएलए कोर्ट जबलपुर में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व विधायक शिवराज सिंह चौहान, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष व सांसद वीडी शर्मा और विधायक भूपेंद्र सिंह के खिलाफ दस करोड़ की मानहानि का परिवाद दायर किया था। परिवाद में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण से संबंधित उन्होंने कोई बात नहीं कही थी। उन्होंने मध्य प्रदेश में पंचायत और निकाय चुनाव मामले में परिसीमन और रोटेशन की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में पैरवी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर रोक लगा दी तो भाजपा नेताओं ने साजिश करते हुए इसे गलत ढंग से पेश किया। सीएम शिवराज, वीडी शर्मा और भूपेन्द्र सिंह ने गलत बयान देकर ओबीसी आरक्षण पर रोक का ठीकरा उनके सिर फोड़ दिया। जिससे उनकी छवि धूमिल करके आपराधिक मानहानि की है।
एमपी एमएलए विशेष कोर्ट ने माना दोषी
एमपी एमएलए विशेष कोर्ट ने 20 जनवरी को न्यायाधीश विश्वेश्वरी मिश्रा ने प्रकरण की सुनवाई करते हुए प्रथम दृष्टिया तीनों को धारा 500 दोषी मानने हुए प्रकरण दर्ज करने के निर्देश जारी किये थे। उक्त आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। याचिका में कहा गया था कि अनावेदक ने आपराधिक मानहानि के साथ दस लाख का सिविल सूट भी दायर किया था। अनावेदक ने एक ही मामले में दो अलग-अलग प्रकरण दायर किये है। न्यायालय ने फैसला देते समय भौतिक परिस्थिति तथा प्रासंगिक प्रावधानों पर ध्यान नहीं दिया। प्रकरण में अभियोजन की अनुमति नहीं ली गयी थी। न्यायिक क्षेत्राधिकार के तहत एमपी एमएलए जबलपुर की बजाये भोपाल में परिवाद दायर किया जाना चाहिये था। याचिका में कहा गया था कि 22 मार्च को एमपी एमएलए कोर्ट जबलपुर में प्रकरण की सुनवाई है और याचिकाकर्ताओं को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के निर्देश जारी किये गये है। लोकसभा चुनाव में व्यस्त होने के कारण वह व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में असक्षम है। उन्हें व्यक्तिगत उपस्थिति की छूट प्रदान की जाये। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि अगली सुनवाई में अंतरिम राहत की मांग पर विचार किया जायेगा। याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से उपस्थित से छूट के लिए संबंधित न्यायालय के समक्ष आवेदन करें। जिस पर संबंधित न्यायालय विचार करेंगे।