Rafique Khan
प्रेग्नेंट बिलकिस बानो के हाथ-पांव तोड़कर गैंग रेप करने वाले 11 दोषियों को भारत की सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर जेल का रास्ता दिखा दिया है। दो बच्चे खो कर, 22 साल से लगातार संघर्ष कर रही बिलकिस बानो के केस में गुजरात सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। सभी 11 दोषियों को दो हफ्ते के भीतर सरेंडर करने का आदेश दिया गया है। गौरतलब है कि जब गुजरात सरकार ने इन अपराधियों को रिहाई का फरमान सुनाया था तो इन्होंने दीपावली जैसा जश्न मनाया था। सुप्रीम कोर्ट के इस सुनामी आदेश से न सिर्फ अपराधियों के परिवार बल्कि उनको समर्थन देने वाली सरकार में भी हड़कंप की स्थिति बन गई है।
जानकारी के मुताबिक बताया जाता है कि बिलकिस के साथ गैंगरेप हुए करीब 22 साल बीत चुके हैं। बिलकिस पहले गुजरात पुलिस से लड़ी। दोषी नहीं मिले, कहकर केस में क्लोजर रिपोर्ट लगा दी गई थी। केस CBI के पास ट्रांसफर हुआ। 15 साल की लंबी लड़ाई के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला बरकरार रखा। गुजरात दंगों के दौरान 5 महीने की गर्भवती बिलकिस बानो का गैंगरेप हुआ था। उनकी मां और तीन और महिलाओं का भी रेप किया गया था। बिलकिस के 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ 30 नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दाखिल की गई थीं। पहली याचिका में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देते हुए उन्हें तुरंत वापस जेल भेजने की मांग की गई थी। दूसरी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के मई में दिए आदेश पर विचार करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद घर पर जश्न मनाया गया।
पीड़ित की तकलीफ की भी चिंता करनी होगी
जानकारी के मुताबिक गुजरात में 2002 दंगों के दौरान बिलकिस बानो गैंगरेप के 11 दोषियों को समय से पहले जेल से रिहा करने के राज्य सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने सोमवार को फैसला सुनाते हुए कहा- सजा अपराध रोकने के लिए दी जाती है। पीड़ित की तकलीफ की भी चिंता करनी होगी। बेंच ने कहा कि गुजरात सरकार को रिहाई का फैसला लेने का कोई अधिकार नहीं है। वह दोषियों को कैसे माफ कर सकती है। सुनवाई महाराष्ट्र में हुई है तो रिहाई पर फैसला भी वहीं की सरकार करेगी। जिस राज्य में अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, उसी को दोषियों की माफी याचिका पर फैसला लेने का अधिकार है।
जस्टिस रस्तोगी का फैसला भी रद्द
बताया जाता है कि इस कमेंट के साथ ही कोर्ट ने मई 2022 में जस्टिस अजय रस्तोगी (रिटायर्ड) के उस फैसले को भी रद्द कर दिया, जिसमें 11 दोषियों को गुजरात सरकार से शीघ्र माफी के लिए अपील करने की अनुमति दी गई थी। गुजरात सरकार ने इन्हें 15 अगस्त 2022 को रिहा कर दिया था। बेंच ने सभी 11 दोषियों को 2 सप्ताह में सरेंडर करने को कहा।
फैसले के दौरान बोले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस
जस्टिस नागरत्ना: प्लेटो ने का कहा था कि सजा प्रतिशोध के लिए नहीं बल्कि सुधार के लिए है। क्यूरेटिव थ्योरी में सजा की तुलना दवा से की जाती है, अगर किसी अपराधी का इलाज संभव है, तो उसे मुक्त कर दिया जाना चाहिए। यह सुधारात्मक सिद्धांत का आधार है। लेकिन पीड़ित के अधिकार भी महत्वपूर्ण हैं। नारी सम्मान की पात्र है। क्या महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों में छूट दी जा सकती है? ये वो मुद्दे हैं जो उठते हैं। हम योग्यता और स्थिरता दोनों के आधार पर रिट याचिकाओं पर विचार करने के लिए आगे बढ़ते हैं। इस मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद ये बातें सामने आती हैं। 1. क्या पीड़िता द्वारा धारा 32 के तहत दायर याचिका सुनवाई योग्य है? 2. क्या छूट के आदेश पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिकाएं मानने योग्य हैं।? 3. क्या गुजरात सरकार छूट आदेश पारित करने में सक्षम थी? 4. क्या दोषियों को छूट का आदेश कानून के अनुसार दिया गया? जॉर्ज बर्नार्ड शॉ को कोट करते हुए कहा- लोग ठोकर खाने से नहीं सुधरते। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अपराध की घटना का स्थान और कारावास का स्थान प्रासंगिक विचार नहीं हैं। जहां अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है वह सही सरकार है।अपराध किए जाने के स्थान की बजाय मुकदमे की सुनवाई के स्थान पर जोर दिया जाता है। 13 मई, 2022 का फैसला (जिसने गुजरात सरकार को दोषी को माफ करने पर विचार करने का निर्देश दिया था) अदालत के साथ धोखाधड़ी करके और भौतिक तथ्यों को छिपाकर प्राप्त किया गया था।