Rafique Khan
यूपी के बांदा जिले में तैनात एक सिविल जज ने चौंकाने वाला आरोप लगाते हुए CJI को पत्र लिखा और इच्छा मृत्यु की मांग की है। महिला जज का आरोप है कि जब वह बाराबंकी में पदस्थ थी तो उन्हें जिला जज द्वारा शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित कर शोषण किया गया है। महिला जज का आरोप है कि उन्होंने इस संबंध में लगातार शिकायत की लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी है। जिला जज द्वारा रात में मिलने का दबाव भी कई बार बनाया गया है।
इस संबंध में प्राप्त जानकारी के अनुसार कहा जाता है कि महिला जज ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लेटर लिखा है। इसमें कहा है कि भरी अदालत में मेरा शारीरिक शोषण हुआ। मैं दूसरों को न्याय देती हूं, मगर खुद अन्याय का शिकार हुई। जब मैंने जज होते हुए इंसाफ की गुहार लगाई, तो 8 सेकेंड में सुनवाई करके पूरा मामला अनसुना कर दिया गया। मैं लोगों के साथ न्याय करूंगी, ये सोचकर सिविल सेवा ज्वॉइन की थी। मगर मेरे साथ ही अन्याय हो रहा है। अब मेरे पास सुसाइड के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं बचा है। इसलिए मुझे इच्छा मृत्यु की परमिशन दी जाए।
7 अक्टूबर 2022 का है मामला
महिला जज के मुताबिक, 7 अक्टूबर 2022 को बाराबंकी जिला बार एसोसिएशन ने न्यायिक कार्य के बहिष्कार का प्रस्ताव पारित कर रखा था। उसी दिन सुबह साढ़े 10 बजे मैं अदालत में काम कर रही थी। इसी दौरान महामंत्री और वरिष्ठ उपाध्यक्ष कई वकीलों के साथ कोर्ट कक्ष में घुस आए। मेरे साथ बदसलूकी शुरू कर दी। इस दौरान गाली-गलौज करते हुए मेरे कक्ष की बिजली भी बंद कर दी गई। इसके साथ ही कक्ष में मौजूद अन्य वकीलों को जबरन बाहर निकाल दिया। इसके बाद उन्होंने मुझे धमकी भी दी। हमने इसकी शिकायत की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। हालांकि इस घटना को लेकर बार एसोसिएशन ने कार्य का बहिष्कार किया था।
लेटर में लिखा है-न्याय मांगना भीख मांगने जैसा
मैं इस पत्र को बेहद दुख और पीड़ा के साथ लिख रही हूं। इसे लिखने का कोई और मकसद नहीं है। सिर्फ मैं अपने गॉर्जियन (चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया) से अपनी कहानी बयां करके अपनी इच्छा मृत्यु के लिए प्रार्थना करना चाहती हूं। मैंने न्यायिक सेवा बेहद उत्साह और विश्वास के साथ ज्वॉइन की थी। इस नौकरी में मेरा मकसद कॉमन लोगों को न्याय देना था। लेकिन, नौकरी के दौरान मुझे यह जल्द पता चल गया कि न्याय मांगना भीख मांगने जैसा है। मैंने खुद इस बात का एहसास किया। नौकरी के बेहद कम समय में मुझे भरी अदालत में अपमानित किया गया। गालियां दी गईं। मुझे बेहद अपने कम कार्यकाल में शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ा। खुलेआम गाली-गलौज सुननी पड़ी। उन्होंने मेरा ACR भी खराब कर दिया। हमको जस्टिस कैसे मिलेगा? जब सुनवाई ही आरोपियों के अंडर में होगी।
जैसे मैं कोई असामाजिक तत्व हूं
मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया गया, जैसे मैं कोई असामाजिक तत्व हूं। मैं दूसरों को न्याय सुनाती हूं, मगर मेरे बारे में कौन सोचता है? मैं भारत में काम करने वाली हर एक महिला से कहना चाहती हूं कि शारीरिक शोषण के साथ वर्कप्लेस पर जीना सीख लें, ये हमारे जीवन का कड़वा सच है। POSH एक्ट भी एक दिखावा है। इस पर कोई सुनवाई नहीं होती है, न कोई पेन लेता है। यदि आप शिकायत करेंगे, तो आपको टॉर्चर किया जाएगा। जब मैं यह कह रही हूं कि कोई नहीं सुन रहा है, तो इसमें शीर्ष अदालत भी शामिल है। इसकी शिकायत करने और न्याय मांगने के बाद मुझे सिर्फ 8 सेकेंड मिले, ऐसी स्थिति में मैं सुसाइड तक का सोचने लगी।
शोषण की एक जांच तक नहीं करवा पाई
अगर कोई भी महिला सिस्टम के खिलाफ लड़ने के बारे में सोचती है, तो ये गलत है, मैं एक जज के तौर पर इसका एहसास कर चुकी हूं। मैं अपने खिलाफ हुए शोषण की एक जांच तक नहीं करवा पाई। महिलाओं को मैं सुझाव देती हूं वो खिलौना और कोई सामान नहीं हैं। कृपया मुझे अपनी अपनी जिंदगी सम्मान जनक तरीके से खत्म करने की अनुमति दें। मेरे भाग्य के लिए कोई भी जिम्मेदार नहीं है। जो आरोपी हैं वो अभी भी बाराबंकी में ही हैं। सभी अधिकारी उनके अंडर में हैं, तो निष्पक्ष जांच कैसे होगी? जब जज ही परेशान हैं, तो आम जनता को कैसे न्याय मिलेगा। जब हमको ही न्याय नहीं मिल रहा है। अब मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा है। 31 साल की महिला जज लखनऊ की रहने वाली है। 2019 में वो जज बनी थीं। उनकी पहली तैनाती बाराबंकी में हुई थी। इसके बाद मई 2023 में उनका ट्रांसफर बांदा हुआ था। इसके बाद से वो यहीं पर तैनात हैं।