पंकज स्वामी
कहते हैं 'वक्त बदलता है और किसी के लिए रुकता नहीं है'। आज घंटाघरों के अलावा कलाई पर डिजिटल घड़ी एक फैशन या जीवनशैली का सहायक उपकरण बन गई है। अब जब हर किसी के पास मोबाइल फोन, लैपटॉप और हर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर घड़ी उपलब्ध है, तो कौन घड़ी खरीदने पर पैसा खर्च करना चाहता है? लेकिन सालों पहले बनाए गए घंटा घरों का अपना महत्व है। स्वतंत्रता आंदोलनों के दौरान घंटा घर सार्वजनिक बैठकों का स्थान रहता था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1930 में घंटा घर में स्वतंत्रता सेनानियों की बैठकें लिया करते थे। उन दिनों स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा बनाए और गाए गए गीतों में 'घंटाघर' शब्द बहुत लोकप्रिय हुआ। ज़रा इस गीत पर गौर कर लें-
घंटा घर की चार घड़ी
चारों में ज़ंजीर पड़ी
जब भी घंटा बजता था
खड़ा मुसाफ़िर हंसता था
हंसता था वो बेधड़क
आगे देखो नई सड़क
नई सड़क पर बोआ बाजरा
आगे देखो शहर शाहदरा
शहर शाहदरा में लग गई आग
आगे देखो गाजियाबाद
गाजियाबाद में फूटा अंडा,
उस में से निकला तिरंगा झंडा
झंडे से आई आवाज़
इंकलाब ज़िंदाबाद।
जब बात घंटा घर की आई है तो जबलपुर के घंटा घर (क्लॉक टावर) की याद आना लाजिमी है। ओमती क्षेत्र स्थित घंटा घर जबलपुर की सबसे पुरानी इमारतों में से एक है। 104 वर्ष पुरानी इस इमारत की सड़क से जबलपुर के हजारों-लाखों लोग ओमती से निकलते वक्त एक बार निहार लेते हैं। स्टेशन से हाई कोर्ट के रास्ते शहर में प्रविष्ट होने वाले परदेसी घंटा घर को दूर से ही देख कर उत्तेजित होते हैं। लोगों का कहना है कि चार मंज़िला घंटा घर में जब तक कृत्रिम रंग रोगन नहीं हुआ था, तब तक उसकी वास्तविकता व सुंदरता ज्यादा आकर्षित करती थी। महसूस होता है कि जबलपुरियों का इसके इतिहास से ज्यादा सरोकार नहीं लेकिन परदेसी घंटा घर के बारे ज्यादा जानने के सदैव इच्छुक रहते हैं। यह भी सत्य है कि जबलपुर को काफ़ी वर्षों से छोड़े लोगों की याद में घंटा घर आज भी जीवित है। भारत का सबसे पुराना और मध्यप्रदेश का पहला चॉयनीज रेस्त्रां घंटा घर के नज़दीक होने के कारण ‘क्लॉक टॉवर चॉयनीज रेस्त्रां के नाम से मशहूर है। जबलपुर के पत्रकार-संपादक रम्मू श्रीवास्तव ने तो अपने साप्ताहिक कॉलम का नाम ‘घंटा घर से’ रखा था।
विक्ट्री मेमोरियल टॉवर-घंटा घर में लगे शिलापट्ट पर अंकित शिलालेखों के अनुसार, 'विक्ट्री मेमोरियल टॉवर' की आधारशिला 15 दिसंबर 1918 को जबलपुर के चीफ कमिश्नर बेंजामिन रॉबर्ट्स द्वारा रखी गई थी। घंटा घर वर्ष 1919 में बनकर तैयार हुआ था। इसे ब्रितानिया सरकार की प्रथम विश्व युद्ध में विजय स्मृति के तौर पर बनाया गया था। उस समय हाथ घड़ी बांधने वालों की संख्या कम थी। घंटा घर में प्रत्येक घंटा बीतने के साथ चारों दिशा में घंटा भी गूजता था। चार मंज़िला घंटा घर की तीसरी मंज़िल में चारों दिशाओं की ओर विशाल डॉयल वाली घड़ी लगी है। इसके भूतल पर चार मेहराबदार द्वार हैं। छह खंबों के आधार पर पूरी इमारत खड़ी है। घंटा घर पर कुछ शिलालेख पढ़ने में नहीं आते हैं। लगभग सौ साल बाद वर्ष 2019-20 में घंटा घर की मरम्मत कर इसको चमकाने की कोशिश की गई। आठ-दस साल पहले इसकी घड़ियां खराब हुई तो उनको परिवर्तित कर नई घड़ी लगाई गई। बताया जाता है कि पुरानी घड़ियां नगर निगम में कुछ दिन तक तो रखी रहीं और फिर यह ऐसी गायब हुईं कि आज तक नहीं मिली।
भारत में कौन सा घंटा घर सबसे पहले बना-पहला सिटी क्लॉक टॉवर 1870 के दशक में शाहजहानाबाद (दिल्ली) के मध्य में बनाया गया था, इससे बहुत पहले अंग्रेजों ने भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने के बारे में सोचा था। अपने दिल में वे जानते थे कि भारत की असली राजधानी दिल्ली की मुगल राजधानी थी। अपनी प्रतिष्ठित उपस्थिति और डिजाइन के साथ, दिल्ली में क्लॉक टॉवर विश्व प्रसिद्ध मुगल शहर के केंद्र में लगभग 80 वर्षों तक खड़ा रहा, जिसे अंग्रेजों ने अंतिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर से छीन लिया था। यह भारत में निर्मित पहले क्लॉक टावरों में से एक था। इस दृष्टि से देखें तो जबलपुर में पचास साल के बाद घंटा घर का निर्माण हुआ।
घड़ियाली टाइमकीपर- सभ्यता की दृष्टि से, भारतीयों ने धार्मिक या व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए क्लॉक टावरों का निर्माण बिल्कुल नहीं किया। हिन्दी शब्द घड़ी, घड़ी या घूरी जिसे हम घड़ी या घड़ी कहते हैं, वास्तव में समय की एक माप या इकाई है। प्राचीन भारतीय समय निर्धारण प्रणाली के अनुसार एक घड़ी 24 मिनट की होती थी। इस हिसाब से एक दिन और रात में 60 घरियां होती हैं। मुगल सम्राट जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर (1483-1530) के बाबरनामा के अनुसार-"यहां के शहरवासी घड़ियाली नामक एक टाइमकीपर को नियुक्त करते हैं, जो एक ऊंचे स्थान पर लटकी हुई बड़ी पीतल की प्लेट की घंटी बजाता है। दिन के प्रत्येक पहर को चिह्नित करने के लिए शहर का केंद्र। एक दिन और रात में चार-चार पहर होते हैं। घड़ियाली घारी को मापने और उसकी घोषणा करने के लिए पानी की घड़ी, क्लेप्सीड्रा का उपयोग करते थे।''
घंटाघरों निर्माण का क्या था उद्देश्य- पहले के समय में भी क्लॉक टॉवर खूबसूरती से निर्मित मीनारों से ज्यादा कुछ नहीं थे, जो निश्चित अंतराल पर बांग देने वाले यांत्रिक मुर्गों के रूप में अधिक काम करते थे ताकि लोग एक व्यवस्थित या नियमित तरीके से अपना जीवन जी सकें। चर्च ने विश्वासियों को प्रार्थनाओं में भाग लेने के लिए याद दिलाने और लाने के लिए बेल टावर्स और बाद में क्लॉक टावर्स का उपयोग किया। इस्लाम ने ऊंची मीनारों का उपयोग किया जबकि हिंदुओं ने इसी उद्देश्य के लिए शंख या धातु की घंटियों का उपयोग किया।
जबलपुर के घंटा घर का ऐतिहासिक महत्व कई तरह से है। हम लोग थोड़े सजग और सतर्क हो कर 100 साल पुरानी इस इमारत को हर तरीके से बचाएं। क्या आप ने एफिल टॉवर में झंडे-पोस्टर बंधे देखे? मैंने तो नहीं देखा। फिर घंटा घर में ऐसा क्यों होता है।