Rafique Khan
जानकारी के मुताबिक शिवराज मंत्रिमंडल में राज करने वाले 10 मंत्रियों को डॉक्टर मोहन यादव की लिस्ट से काटा गया है। गोपाल भार्गव समेत भूपेंद्र सिंह, मीना सिंह, उषा ठाकुर, डॉक्टर प्रभु राम चौधरी, बिसाहू लाल जैसे मंत्री नहीं बन पाए हैं।
पिछली बार के इन मंत्रियों को इस कारण नहीं मिला स्थान
गोपाल भार्गव- नौवीं बार विधायक बने। 70 वर्ष से अधिक उम्र। सागर से सिंधिया खेमे के गोविंद सिंह राजपूत को जातिगत समीकरणों के आधार पर लिया गया। इस कारण सागर जिले से आने वाले भार्गव को मौका नहीं मिला।
भूपेंद्र सिंह- शिवराज के करीबी मंत्री थे। सागर से गोविंद सिंह राजपूत को मंत्री बनाए जाने के कारण भूपेंद्र सिंह जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण में फिट नहीं बैठे। गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह के बीच विवाद से दोनों का नुकसान हुआ।
डा. प्रभुराम चौधरी- सांची से विधायक हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से भाजपा में आए थे। मंत्री रहते प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा।
बृजेंद्र प्रताप सिंह- पन्ना से विधायक और शिवराज सरकार में मंत्री रहे। क्षत्रिय समाज से हैं, पर जातिगत समीकरणों में फिट नहीं बैठे। मंत्री रहते हुए उनके कुछ करीबियों और रिश्तेदारों की शिकायत भी गुपचुप तरीके से पार्टी संगठन में हुई थी।
मीना सिंह- मानपुर से पांचवीं बार विधायक बनीं। शिवराज सरकार में मंत्री रहीं। आदिवासी वर्ग से संपतिया उइके को पार्टी ने मंत्री बनाया। विभाग में अधिकारियों से तालमेल अच्छा नहीं होने की बातें भी उनके कार्यकाल में आती रहीं।
बिसाहूलाल सिंह- कांग्रेस से भाजपा में आए। बड़े आदिवासी नेता की छवि है। सातवीं बार विधायक बने। उम्र 73 वर्ष हो चुकी है। आदिवासी वर्ग से चार मंत्री बनाए गए, इस कारण वह समीकरण में भी फिट नहीं बैठे।
बृजेद्र सिंह यादव- मुंगावली सीट से तीसरी बार विधायक बने हैं। वह यादव समाज से आते हैं। मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के अलावा कृष्णा गौर भी महिला हैं, इस कारण जातिगत समीकरण के चलते उन्हें बाहर होना पड़ा।
हरदीप सिंह डंग- सुवासरा से चौथी बार विधायक बने हैं। वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे। शिवराज सिंह चौहान के करीबी माने जाते हैं। पिछली सरकार में मंत्री भी थे। मालवा-निमाड़ से मुख्यमंत्री को मिलाकर कैबिनेट में सात सदस्य हो चुके हैं, इसलिए वह क्षेत्रीय समीकरण में सटीक नहीं बैठे।
ओम प्रकाश सखलेचा- पूर्व मंत्री वीरेंद्र सखलेचा के बेटे हैं। पिछली सरकार में मंत्री भी थे। उनके पास एमएसएमई विभाग था। मंत्री के रूप में उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं माना जाता। मालवांचल से और लोगों को मंत्री बनाने से क्षेत्रीय संतुलन बिगड़ सकता था।
ऊषा ठाकुर- इंदौर से कैलाश विजवर्गीय और तुलसीराम सिलावट को मंत्री बनाए जाने के कारण क्षेत्रीय समीकरण में वह पिछड़ गईं। मंत्री रहते हुए विभागीय काम में उनका बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं माना गया था।
पिछली बार के इन मंत्रियों को इस कारण नहीं मिला स्थान
गोपाल भार्गव- नौवीं बार विधायक बने। 70 वर्ष से अधिक उम्र। सागर से सिंधिया खेमे के गोविंद सिंह राजपूत को जातिगत समीकरणों के आधार पर लिया गया। इस कारण सागर जिले से आने वाले भार्गव को मौका नहीं मिला।
भूपेंद्र सिंह- शिवराज के करीबी मंत्री थे। सागर से गोविंद सिंह राजपूत को मंत्री बनाए जाने के कारण भूपेंद्र सिंह जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण में फिट नहीं बैठे। गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह के बीच विवाद से दोनों का नुकसान हुआ।
डा. प्रभुराम चौधरी- सांची से विधायक हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से भाजपा में आए थे। मंत्री रहते प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा।
बृजेंद्र प्रताप सिंह- पन्ना से विधायक और शिवराज सरकार में मंत्री रहे। क्षत्रिय समाज से हैं, पर जातिगत समीकरणों में फिट नहीं बैठे। मंत्री रहते हुए उनके कुछ करीबियों और रिश्तेदारों की शिकायत भी गुपचुप तरीके से पार्टी संगठन में हुई थी।
मीना सिंह- मानपुर से पांचवीं बार विधायक बनीं। शिवराज सरकार में मंत्री रहीं। आदिवासी वर्ग से संपतिया उइके को पार्टी ने मंत्री बनाया। विभाग में अधिकारियों से तालमेल अच्छा नहीं होने की बातें भी उनके कार्यकाल में आती रहीं।
बिसाहूलाल सिंह- कांग्रेस से भाजपा में आए। बड़े आदिवासी नेता की छवि है। सातवीं बार विधायक बने। उम्र 73 वर्ष हो चुकी है। आदिवासी वर्ग से चार मंत्री बनाए गए, इस कारण वह समीकरण में भी फिट नहीं बैठे।
बृजेद्र सिंह यादव- मुंगावली सीट से तीसरी बार विधायक बने हैं। वह यादव समाज से आते हैं। मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के अलावा कृष्णा गौर भी महिला हैं, इस कारण जातिगत समीकरण के चलते उन्हें बाहर होना पड़ा।
हरदीप सिंह डंग- सुवासरा से चौथी बार विधायक बने हैं। वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे। शिवराज सिंह चौहान के करीबी माने जाते हैं। पिछली सरकार में मंत्री भी थे। मालवा-निमाड़ से मुख्यमंत्री को मिलाकर कैबिनेट में सात सदस्य हो चुके हैं, इसलिए वह क्षेत्रीय समीकरण में सटीक नहीं बैठे।
ओम प्रकाश सखलेचा- पूर्व मंत्री वीरेंद्र सखलेचा के बेटे हैं। पिछली सरकार में मंत्री भी थे। उनके पास एमएसएमई विभाग था। मंत्री के रूप में उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं माना जाता। मालवांचल से और लोगों को मंत्री बनाने से क्षेत्रीय संतुलन बिगड़ सकता था।
ऊषा ठाकुर- इंदौर से कैलाश विजवर्गीय और तुलसीराम सिलावट को मंत्री बनाए जाने के कारण क्षेत्रीय समीकरण में वह पिछड़ गईं। मंत्री रहते हुए विभागीय काम में उनका बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं माना गया था।