सिविल जज प्रवेश परीक्षा में सालाना 6 पेशी की पात्रता शर्त हाईकोर्ट ने की शिथिल, अधिवक्ताओं की याचिका पर दी अंतरिम राहत - khabarupdateindia

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सिविल जज प्रवेश परीक्षा में सालाना 6 पेशी की पात्रता शर्त हाईकोर्ट ने की शिथिल, अधिवक्ताओं की याचिका पर दी अंतरिम राहत





Rafique Khan


मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अधिवक्ताओं द्वारा दायर रिट याचिका में अंतरिम आदेश पारित करते हुए सिविल जज प्रवेश परीक्षा में सालाना 6 पेशी की पात्रता शर्त को शिथिल कर दिया है। उक्त प्रक्रिया के तहत आवेदक अभ्यर्थी को पिछले तीन वर्ष में प्रतिवर्ष के अनुसार न्यायालय में 6 पेशियां या आदेश पत्रिकाओं का सबूत देने की बाध्यता थी।

इस संबंध में जानकारी देते हुए सुको के युवा अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने बताया कि हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस रवि मालीमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगल पीठ में याचिका की सुनवाई हुई। न्यायालय द्वारा यह अंतरिम आदेश उस याचिका में की है जो की रजनीश यादव एवं अन्य याचिकर्ताओं द्वारा उच्च न्यायालय में दायर की गयी थी, जिसमे 14/01/2024 को होने वाली सिविल जज की परीक्षा के प्रवेश नियमों को चुनौती दी गयी थी |

विकल्प में यह पात्रता है

प्रवेश नियमो में यह शर्त है कि अधिवक्ता के प्रवेश परीक्षा देने हेतु पात्रता के लिए न्यूनतम 3 वर्ष की वकालत के साथ साथ प्रतिवर्ष 6 प्रकरणों में पेशी/आदेश पत्रिकाओं का ब्यौरा प्रस्तुत करना होगा | साथ ही विकल्प में यह पात्रता है कि कानून विधि स्नातक की सभी परीक्षाओं में कुल मिलाकर कम से कम 70% अंक प्राप्त किये हो | पात्रता की इन्ही शर्तों को चुनौती देते हुए याचिका दायर की गयी | याचिकर्ता अभ्यर्थियों की ओर से सुको के अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता एवं अधिवक्ता कपिल दुग्गल उपस्थित हुए |

जजेस एसोसिएशन के निर्णय के मानदंडों के विपरीत


याचिका में पात्रता की सभी शर्तों को चुनौती देते हुए कहा की ३ वर्ष की अनिवार्यता सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आल इंडिया जजेस एसोसिएशन के निर्णय में दिए गए मानदंडों के विपरीत है एवं ३ वर्ष की अनिवार्यता अधिरोपित नहीं की जा सकती | याचिका में यह भी आधार लिया गया की विधि स्नातक डिग्री में 70% अंकों की पात्रता, वह भी प्रथम प्रयास में एक ऐसी शर्त है जो की असंवैधानिक है |

दोनों को समतुल्य नहीं माना जा सकता

भिन्न भिन्न विश्वविद्यालयों की, शासकीय एवं निजी लॉ कॉलेजों की अलग अलग परीक्षाएं होती है , जिनमे अलग अलग गणनाओं से अंक प्रदान किये जाते है, जिनको एक नहीं माना जा सकता | कुछ शासकीय लॉ कॉलेज द्वारा अत्यंत काम अंक दिए जाते है, वही निजी विश्वविद्यालयों द्वारा छात्रों को परीक्षा हेतु पात्र बनाने के लिए अत्यधिक अंक दिए जाते है | अतः दोनों को समतुल्य नहीं माना जा सकता | याचिका में यह भी प्रार्थना की गयी की 70% अंकों की पात्रता अवैधानिक है एवं पात्र अभ्यर्थियों को भी परीक्षा में सम्लित होने से अपात्र कर देती है |