विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने के कारण 22 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस से नाराज होकर नेता चुनाव में मैदान में रहे, इन्हें समझाने-मनाने के बहुत प्रयास भी किए गए पर बात नहीं बनी। इनके चुनाव लड़ने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया। सबने अपने-अपने स्तर पर प्रयास किया तो अधिकतर सीटों पर मतदान का प्रतिशत बढ़ा लेकिन कुछ सीटों पर यह कम भी हुआ। इन सीटों के परिणाम वोटों के बंटवारे से तय होंगे। इसको लेकर राजनीतिक दल अपना-अपना आकलन कर रहे हैं। प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों के लिए 17 नवंबर को 77.15 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया। मतों की गणना 3 दिसंबर को होगी पर सबकी नजर 22 सीटों के परिणाम पर है।
22 सीटों के परिणाम प्रभावित होंगे
बालाघाट जिले की परसवाड़ा सीट से पूर्व विधायक कंकर मुंजारे गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से उम्मीदवार हैं। अधिकतर सीटों पर मतदान के प्रतिशत में पिछले चुनाव की तुलना में वृद्धि हुई है। दोनों ही दल के वरिष्ठ पदाधिकारी भी मानते हैं कि वोटों के बंटवारे से इन सभी 22 सीटों के परिणाम प्रभावित होंगे क्योंकि इन सभी नेताओं का अपना जनाधार है। इनमें से एक वर्तमान और 10 पूर्व विधायक हैं। मुरैना जिले की सुमावली सीट पर कांग्रेस के बागी कुलदीप सिंह सिकरवार ने बसपा से चुनाव लड़ा। यहां मतदान 72.20 प्रतिशत से घटकर 72.50 रह गया। दिमनी में बसपा के बलवीर दंडोतिया मैदान में हैं। यहां मतदान 70.34 से घटकर 69.76 प्रतिशत रहा। मुरैना सीट पर भाजपा के बागी राकेश सिंह ने भी बसपा से चुनाव लड़ा। यहां मतदान 69.76 से बढ़कर 70.34 हुआ। भिंड जिले की लहार सीट से भाजपा नेता रसाल सिंह बसपा से चुनाव लड़े। यहां 3.91 प्रतिशत अधिक मतदान हुआ।
भाजपा से बागी होकर भिंड से संजीव सिंह कुशवाह, टीकमगढ़ से केके श्रीवास्तव, बंडा से सुधीर यादव, चाचौड़ा से ममता मीणा, अटेर से मुन्नालाल भदौरिया, सीधी से केदारनाथ शुक्ल, बुरहानपुर से हर्षवर्धन सिंह, मैहर से नारायण त्रिपाठी, चुरहट से अनेन्द्र मिश्रा और होशंगाबाद से भगवती चौरे चुनाव मैदान में हैं। डा.आंबेडकर नगर महू से अंतर सिंह दरबार, बड़नगर से राजेंद्र सिंह सोलंकी, आलोट से प्रेमचंद गुड्डू, सिवनी मालवा से ओम रघुवंशी, नागौद से यादवेंद्र सिंह, गोटेगांव से शेखर चौधरी और डिंडौरी से रूद्रेश परस्ते ने चुनाव लड़ा।
... कोई कसर नहीं छोड़ी होगी
जबलपुर में शहरी विधानसभा क्षेत्र के परिणाम भी बड़े रोचक आने की उम्मीद है। यहां भारतीय जनता पार्टी तथा कांग्रेस दोनों ही के संगठन नेताओं ने रूठे हुए को बागी होने से बचा लिया। यानी कि किसी भी नेता ने बगावत करते हुए चुनाव मैदान में अपने दांव नहीं आजमाएं लेकिन वह अपने आप से इस बात को भी नहीं भुला पाए कि उनके साथ पार्टी ने ठीक नहीं किया है। दोनों ही संगठन के ऐसे लोगों ने निश्चित तौर पर परिणामों को प्रभावित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी होगी।